🇮🇳 सितंबर में भारत ने गंवाया उभरते बाजारों का ताज, चीन फिर बना नंबर वन देश
पिछले कुछ सालों से जब भी उभरते बाजारों (Emerging Markets) की बात होती थी, भारत का नाम सबसे आगे आता था। तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था, मज़बूत शेयर बाज़ार, और लगातार बढ़ती विदेशी निवेश की लहर ने भारत को एशिया का नया सितारा बना दिया था।
लेकिन सितंबर 2025 में हालात थोड़ा बदल गए — चीन ने फिर से अपनी पुरानी पकड़ दिखाते हुए भारत से “उभरते बाज़ारों का ताज” छीन लिया।
🌏 बदलता समीकरण: क्यों चीन आगे निकल गया?
सितंबर के महीने में जब वैश्विक बाजारों में उतार-चढ़ाव जारी था, चीन के शेयर बाजार ने अप्रत्याशित रूप से सुधार दिखाया।
Shanghai Composite Index में लगभग 4.8% की बढ़त देखने को मिली, जबकि भारत का Sensex और Nifty हल्की गिरावट के साथ बंद हुए।
इसी दौरान, यूएस डॉलर इंडेक्स मज़बूत हुआ, जिससे भारत समेत कई एशियाई देशों की मुद्राओं पर दबाव बढ़ा।
भारत में विदेशी निवेशकों (FIIs) ने सितंबर में लगभग ₹12,000 करोड़ की निकासी की, जबकि चीन में धीरे-धीरे FII फ्लो वापस आना शुरू हुआ।
यह ट्रेंड बताता है कि निवेशक फिलहाल चीन के सस्ते वैल्यूएशन और सरकारी नीतिगत समर्थन से दोबारा आकर्षित हो रहे हैं।
📉 भारतीय बाज़ारों पर दबाव क्यों बढ़ा?
पिछले दो महीनों से भारत के शेयर बाजार में उच्च वैल्यूएशन को लेकर चिंता बढ़ी है।
कई सेक्टर, खासकर आईटी, ऑटो, और बैंकिंग, अपने ऑल-टाइम हाई के आसपास ट्रेड कर रहे थे।
इस वजह से नए निवेशकों के लिए एंट्री पॉइंट महंगे लगने लगे।
दूसरी तरफ, रुपया कमजोर हुआ — जो इस साल के निचले स्तर 84.22 प्रति डॉलर तक पहुंच गया।
इसने विदेशी निवेशकों के लिए भारत की रिटर्न वैल्यू को घटा दिया।
यानी डॉलर में निवेश करने वाले विदेशी निवेशक जब अपने रिटर्न को वापस कन्वर्ट करते हैं, तो उन्हें कम लाभ मिलता है।
💰 चीन के लिए सरकार का बड़ा दांव
चीन की सरकार ने अगस्त के अंत और सितंबर की शुरुआत में कई कदम उठाए जो बाजार को समर्थन देने में कामयाब रहे।
उदाहरण के लिए:
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प्रॉपर्टी सेक्टर के लिए राहत पैकेज
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टेक कंपनियों पर रेग्युलेटरी सॉफ्टनिंग
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यूआन को स्थिर रखने के लिए फॉरेक्स हस्तक्षेप
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और ब्याज दरों में मामूली कटौती
इन कदमों का असर तुरंत दिखा — चीन के CSI 300 Index ने सितंबर में करीब 5% की बढ़त दर्ज की, जो 2025 में अब तक का सबसे अच्छा महीना रहा।
वहीं, भारत का Sensex इसी अवधि में लगभग 1.5% गिर गया।
🏦 भारतीय अर्थव्यवस्था अभी भी मजबूत, लेकिन बाजार भावनाएं नाज़ुक
यह सच है कि चीन ने सितंबर की रैंकिंग में भारत को पीछे छोड़ दिया,
लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि भारत की आर्थिक स्थिति खराब है।
दरअसल, भारत की GDP ग्रोथ अब भी दुनिया में सबसे तेज़ है — 6.7%,
जबकि चीन की 4.9% के आसपास बनी हुई है।
फर्क बस इतना है कि भारत में अभी “sentiment cooling phase” चल रहा है।
निवेशक थोड़ी सावधानी से चल रहे हैं, खासकर लोकसभा चुनाव से पहले के महीनों में।
रिज़र्व बैंक की नीतियों ने भी थोड़ा प्रभाव डाला है —
जहाँ RBI ने महंगाई को काबू में रखने के लिए सख्त मौद्रिक रुख बनाए रखा,
वहीं इससे लिक्विडिटी टाइट हो गई, जिसका असर स्टॉक मार्केट पर दिखा।
📊 रैंकिंग में क्या बदलाव हुआ?
Bloomberg Emerging Market Scoreboard के मुताबिक सितंबर 2025 में:
1️⃣ चीन शीर्ष पर पहुंचा
2️⃣ भारत दूसरे स्थान पर आया
3️⃣ ब्राज़ील, मलेशिया, और थाईलैंड ने भी मामूली सुधार किया
इस रैंकिंग में आर्थिक स्थिरता, करेंसी मूवमेंट, बॉन्ड यील्ड्स, और इक्विटी परफॉर्मेंस को ध्यान में रखा जाता है।
सितंबर में भारत के बॉन्ड यील्ड्स बढ़े, और रुपया गिरा, इसलिए स्कोर थोड़ा कमजोर पड़ा।
📈 निवेशकों का रुख: ‘प्रॉफिट बुकिंग’ की लहर
मार्केट एक्सपर्ट्स का मानना है कि भारत के निवेशकों ने सितंबर में मुनाफा बुक करना शुरू कर दिया।
कई मिडकैप और स्मॉलकैप स्टॉक्स पिछले 6 महीनों में 80-100% तक बढ़ चुके थे।
ऐसे में, प्रॉफिट बुकिंग स्वाभाविक थी।
मुंबई स्थित एक एनालिस्ट ने कहा —
“यह बस एक शॉर्ट-टर्म ब्रेक है। भारत की ग्रोथ स्टोरी खत्म नहीं हुई है,
लेकिन जब वैल्यूएशन ज़्यादा बढ़ जाते हैं, तो बाजार को सांस लेने की ज़रूरत होती है।”
🇨🇳 चीन को बढ़त कैसे मिली?
चीन के लिए दो चीजें खास रहीं —
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सरकारी प्रोत्साहन (stimulus)
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टेक सेक्टर में सुधार
जहाँ पहले Alibaba और Tencent जैसी कंपनियों पर रेग्युलेटरी सख्ती थी,
वहीं अब बीजिंग सरकार ने tone बदल दिया है।
इससे निवेशकों का विश्वास लौटा।
इसके अलावा, युआन को स्थिर रखने के लिए केंद्रीय बैंक ने डॉलर के मुकाबले intervention किया,
जिससे करेंसी में भरोसा बना रहा।
यह सब मिलकर चीन के शेयर बाजार को “momentum booster” दे गया।
📉 भारत में विदेशी निवेशकों की बिकवाली क्यों?
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डॉलर की मज़बूती: अमेरिकी बांड यील्ड्स बढ़ने से विदेशी फंड्स अमेरिका लौटे।
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तेल की कीमतें: ब्रेंट क्रूड फिर से $88 प्रति बैरल के पास पहुंच गया, जो भारत के लिए चिंता का विषय है।
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राजनीतिक अनिश्चितता: चुनावी साल में नीतियों को लेकर निवेशकों में सावधानी।
इन तीनों कारणों ने मिलकर भारत के मार्केट सेंटिमेंट को ठंडा कर दिया।
🔮 आगे क्या उम्मीदें हैं?
अर्थशास्त्रियों का मानना है कि यह गिरावट अस्थायी है।
भारत की दीर्घकालिक कहानी (long-term story) अब भी मजबूत है —
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मजबूत डोमेस्टिक डिमांड
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डिजिटल इंडिया और मैन्युफैक्चरिंग में निवेश
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विदेशी कंपनियों का भारत की ओर झुकाव
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और पॉलिटिकल स्टेबिलिटी
यदि अक्टूबर-नवंबर में FII फ्लो वापस आता है,
तो भारत फिर से “Emerging Market King” बन सकता है।
🗣️ विशेषज्ञों की राय
ICICI Securities के एक रिपोर्ट में कहा गया है:
“भारत की अर्थव्यवस्था चीन से कहीं ज़्यादा स्वस्थ है।
अभी जो बदलाव दिख रहा है, वह सेंटिमेंट का खेल है,
मौलिक आंकड़े अब भी भारत के पक्ष में हैं।”
वहीं HSBC Global Research ने कहा:
“चीन का रैली एक ‘policy-driven bounce’ है,
जबकि भारत की ग्रोथ demand-driven है — इसलिए लंबी दौड़ में भारत का पलड़ा भारी रहेगा।”
💬 आम निवेशकों की राय
दिल्ली के एक रिटेल निवेशक ने कहा —
“मैं तो इसे correction मानता हूँ, डरने की बात नहीं।
अगर मार्केट थोड़ा नीचे आएगा तो खरीदने का अच्छा मौका मिलेगा।”
कई लोग अब यह भी मान रहे हैं कि अक्टूबर में शुरू होने वाली earnings season भारत को फिर से मजबूती दे सकती है।
🧮 सारांश: खेल अभी बाकी है
सितंबर में चीन ने उभरते बाजारों की रैंकिंग में भारत को पछाड़ा जरूर,
लेकिन यह एक अल्पकालिक झटका (short-term correction) ज्यादा है।
भारत की आर्थिक सेहत, डिजिटल ग्रोथ, और जनसांख्यिकीय लाभ (demographic dividend) अब भी उसकी सबसे बड़ी ताकत हैं।
दूसरी तरफ, चीन की अर्थव्यवस्था अभी भी रियल एस्टेट संकट और बुजुर्ग आबादी जैसी चुनौतियों से जूझ रही है।
इसलिए, हो सकता है कि अक्टूबर या नवंबर में कहानी फिर पलट जाए —
और भारत फिर से अपना “उभरते बाजारों का ताज” वापस हासिल कर ले।
📊 निष्कर्ष
सितंबर 2025 का यह बदलाव हमें यह याद दिलाता है कि
बाज़ार भावनाओं का खेल हैं, न कि केवल आंकड़ों का।
कभी चीन आगे निकलता है, कभी भारत।
मगर असली दौड़ उस देश की होती है जो लंबी दूरी तक टिके —
और इस मामले में भारत अभी भी सबसे मज़बूत उम्मीदवार है
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